प्रेस की आज़ादी पर हमला: जशपुर में पत्रकारों को 1-1 करोड़ का नोटिस, जनसंपर्क अधिकारी की बड़ी दबंगई…

जशपुर – छत्तीसगढ़ में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर सीधा वार हुआ है। जशपुर जिले में जनसंपर्क विभाग के एक अधिकारी ने स्थानीय पत्रकारों को कानूनी नोटिस जारी कर 1-1 करोड़ रुपए हर्जाने की धमकी दी है। इस नोटिस ने न सिर्फ मीडिया जगत को हिला दिया है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा कर दिया है कि क्या सत्ता अब पत्रकारिता को बंधक बनाने पर उतारू है?
*नोटिस में कहा गया है कि* पत्रकारों की रिपोर्टिंग तथ्यहीन और छवि धूमिल करने वाली है। इसमें साफ लिखा गया है कि यदि पत्रकार आगे भी इस तरह की खबरें लिखते रहे तो उनके खिलाफ मानहानि अधिनियम, दंड प्रक्रिया संहिता और SC/ST Act तक में कार्रवाई की जाएगी। इतना ही नहीं, 15 दिन के भीतर लिखित माफीनामा न छापने पर अदालत में घसीटकर करोड़ों रुपए वसूले जाने की चेतावनी भी दी गई है।
*पत्रकारों में उबाल :* स्थानीय पत्रकारों ने इस नोटिस को सरकारी दबंगई और पत्रकारिता पर सीधा हमला करार दिया है। उनका कहना है कि जब अधिकारी पर भ्रष्टाचार और गड़बड़ियों के आरोप लगते हैं, तो वह कानूनी हथकंडों और भय दिखाकर सच्चाई दबाने की कोशिश कर रहे हैं। पत्रकारों ने साफ कहा है कि यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत है।
*विशेषज्ञों की राय :* कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि अदालत में इस तरह के मानहानि के दावे टिक नहीं पाएंगे। यदि पत्रकार सत्य, प्रमाण और दस्तावेजों के आधार पर खबर लिखते हैं, तो यह उनका अधिकार और कर्तव्य है। विशेषज्ञों का कहना है कि जनसंपर्क विभाग का दायित्व मीडिया से संवाद का होता है, लेकिन जब उसका ही कोई अधिकारी मीडिया पर करोड़ों का डंडा लहराए, तो यह न केवल विभागीय मर्यादा का हनन है बल्कि संविधान की भावना के खिलाफ भी है।
सामूहिक लड़ाई की तैयारी: जिले के पत्रकार अब इस मामले को पत्रकार संगठनों, राज्यपाल और मुख्यमंत्री के समक्ष ले जाने की तैयारी कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह सिर्फ व्यक्तिगत विवाद नहीं, बल्कि प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला है। वे नोटिस की वापसी और अधिकारी पर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।
जशपुर की यह घटना साफ करती है कि जब कलम पर पहरा लगाया जाता है, तो लोकतंत्र कमजोर होता है। सवाल यह है—क्या सरकार इस नोटिस को दबंगई मानकर कार्रवाई करेगी या फिर पत्रकारों को अदालत की चौखट तक अकेला छोड़ देगी?