विकास के दावों की पोल खोलती ठेलकी की हकीकत – नालियां नदारद, सड़कें गड्ढों में गुम, पानी की किल्लत और शिक्षा का अंधकार।

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बलौदा बाज़ार ज़िले के पलारी ब्लॉक का ग्राम पंचायत ठेलकी आज उस बदहाली का प्रतीक बन चुका है, जहाँ सरकार और पंचायत के विकास के तमाम दावे ज़मीन पर बुरी तरह नाकाम नज़र आते हैं। गाँव की गलियां दलदल में तब्दील हैं, मुख्य सड़कें गहरे गड्ढों से भरी पड़ी हैं और नालियों के अभाव में गंदा पानी जगह-जगह जमा होकर बीमारी फैलाने का खतरा बढ़ा रहा है।गांव के प्राथमिक विद्यालय की हालत भी बेहद गंभीर है। यहाँ 74 बच्चों पर केवल दो शिक्षक हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार प्रत्येक 29 छात्रों पर एक शिक्षक होना चाहिए, लेकिन ठेलकी में यह अनुपात कहीं पूरी नहीं होता। बच्चे शिक्षक की कमी से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित हो रहे हैं और अभिभावक लगातार अधिकारियों से शिकायत करने के बावजूद कोई समाधान नहीं देख पा रहे।

विद्यालय के सामने ही कचरे का बड़ा ढेर लगा हुआ है। इससे उठने वाली बदबू से बच्चों और शिक्षकों का साँस लेना दूभर हो जाता है। पास से गुजरने वाले राहगीरों और ग्रामीणों को भी नाक पर रूमाल रखकर निकलना पड़ता है। ग्रामीणों का कहना है कि कई बार पंचायत और प्रशासन को शिकायत करने के बावजूद इस घुरवा को हटाने की पहल नहीं हुई।

पानी की आपूर्ति के हालात भी बेहद चिंताजनक हैं। “हर घर नल-जल योजना” का दावा गाँव में पूरी तरह विफल साबित हो रहा है। महीने भर में बमुश्किल कुछ ही दिनों पानी नलों तक पहुँचता है, बाकी समय ग्रामीण पानी की किल्लत झेलने को मजबूर हैं। महिलाओं को दूर-दूर तक पानी ढोना पड़ता है, जिससे उनका रोज़मर्रा का जीवन बेहद कठिन हो गया है।

साप्ताहिक बाजार का दृश्य भी गंदगी और बदइंतज़ामी की खुली मिसाल पेश करता है। यहाँ कचरे के ढेर, कीचड़ और दुर्गंध से व्यापारी और खरीदार दोनों परेशान रहते हैं।

ग्राम पंचायत की उपेक्षा का सबसे बड़ा उदाहरण श्मशान घाट है। यहाँ आज तक शेड का निर्माण नहीं हो पाया। अंतिम संस्कार के समय ग्रामीण खुले आसमान तले बारिश और धूप में मजबूर होकर बैठते हैं। श्मशान घाट तक जाने वाली सड़क भी बेहद खराब है। विडंबना यह है कि इसी रास्ते पर कुछ साल पहले शौचालय का निर्माण हुआ था, लेकिन आज तक वह चालू नहीं किया गया।

क्षेत्र के सीईओ कई बार दौरा कर चुके हैं, लेकिन गंभीर हालात उनके दृष्टि से बाहर हैं। वहीं, वर्तमान छत्तीसगढ़ शासन अपने विकास और वादों का श्रेय ले रही है, जबकि विपक्ष में बैठे क्षेत्रीय विधायक भी इस पर कोई संज्ञान नहीं ले रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि नालियां न होने, सड़कें टूटने और अन्य समस्याओं पर न तो प्रशासन और न ही प्रतिनिधि वास्तविक कदम उठा रहे हैं।

ग्रामीणों का कहना है कि नालियां न होने से गाँव का हर रास्ता बरसात में दलदल में बदल जाता है। बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएँ रोज़ इसी दलदल और गड्ढों से होकर निकलने को मजबूर होते हैं। मुख्य मार्ग, जो ठेलकी को आसपास के गाँवों और कस्बों से जोड़ता है, पूरी तरह गड्ढों में तब्दील हो चुका है। यात्री वाहन और दुपहिया वाहन चालकों के लिए यह रास्ता रोज़ का ख़तरा बन गया है।

ठेलकी की यह तस्वीर स्पष्ट रूप से दिखाती है कि विकास के नारे और योजनाएँ केवल काग़ज़ों और भाषणों तक ही सीमित हैं। ज़मीनी हकीकत में ग्रामीण नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं। प्रशासन और पंचायत की बेरुख़ी ने ग्रामीणों की उम्मीदों को तोड़ दिया है।

गाँव के लोग अब सवाल पूछ रहे हैं – आखिर कब उनकी सुध ली जाएगी? कब उनके बच्चों को साफ वातावरण, सुरक्षित सड़कें, पर्याप्त पानी, श्मशान घाट जैसी बुनियादी सुविधा और बेहतर शिक्षा मिलेगी? या फिर ठेलकी का नाम हमेशा बदहाली और उपेक्षा के प्रतीक के रूप में ही लिया जाएगा?