धोखाधड़ी से कब्ज़ाई गई कोटवार की सेवा भूमि , खरीदी-बिक्री की पूरी प्रक्रिया पर उठे गंभीर सवाल।

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कलेक्टर और कमिश्नर ने दो बार खारिज किया आवेदन, फिर भी चमत्कारी ढंग से हो गई रजिस्ट्री और नामांतरण

आखिर किसने दीअनुमति?….

किसने जारी किया बिक्री नकल?… 

कैसे हो गई रजिस्ट्री और नामांतरण?..

रायगढ़ – शासन की सेवा भूमि को लेकर एक बार फिर प्रशासन की कार्यशैली और रजिस्ट्री कार्यालय की निष्क्रियता कटघरे में है। ग्राम दर्रामुड़ा की कोटवार सेवा भूमि खसरा नंबर 375/1 रकबा 0.405 हेक्टेयर को लेकर गंभीर फर्जीवाड़ा और मिलीभगत सामने आई है, जिसमें क्रेता, विक्रेता, पटवारी और रजिस्ट्री कार्यालय की भूमिका संदेह के घेरे में है।

कमिश्नर और कलेक्टर दोनों ने नकारा, फिर कैसे हो गई बिक्री?….

प्रकरण का सबसे चौंकाने वाला पहलू यह है कि इस भूमि को विक्रय के लिए दो बार प्रयास किया गया था जिसे तत्कालीन जिला कलेक्टर और फिर बिलासपुर कमिश्नर कार्यालय ने यह कहकर सिरे से खारिज कर दिया था कि यह सेवा भूमि कोटवार के जीविकोपार्जन हेतु आरक्षित है और इसे बेचा नहीं जा सकता। इसके बावजूद, “किस जादुई आदेश” से यह जमीन न केवल रजिस्टर्ड हुई बल्कि नामांतरण भी हो गया — यह प्रशासन की निष्क्रियता और गहरे भ्रष्टाचार की ओर इशारा करता है।

गवाही, इकरारनामे और पैसे की किश्तों से जुड़ी लंबी फेहरिस्त…

पीड़ित द्वारका प्रसाद सोनी द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज़ों के अनुसार, वर्ष 2013 से लेकर 2022 तक जमीन गिरवी, बिक्री के लिए कई बार इकरारनामा किया गया, जिसमें अलग-अलग किस्तों में विक्रेता कैलाश चौहान और उसके पुत्र राजू चौहान ने लगभग दो लाख रुपये प्राप्त किए। ये सभी इकरारनामे व नकद लेन-देन के सबूतों के साथ दस्तावेज़ी प्रमाण उपलब्ध हैं। बावजूद इसके प्रशासन ने इन तथ्यों की पूरी तरह अनदेखी की और फर्जी घोषणा के आधार पर जमीन को विवाद रहित बता दिया गया।

फर्जी घोषणा, कब्जाधारी को किया दरकिनार….

रजिस्ट्री और नामांतरण दस्तावेजों में यह झूठा उल्लेख किया गया कि जमीन किसी के कब्जे में नहीं है और न ही बंधक है, जबकि पीड़ित पिछले 11 वर्षों से उस पर काबिज है और निरंतर कृषि कर रहा है। यह तथ्य न केवल दस्तावेजी धोखाधड़ी को दर्शाता है, बल्कि प्रशासन द्वारा मामले की उचित जांच न किए जाने की भी पुष्टि करता है।

प्रशासनिक मिलीभगत की खुली किताब…

सवाल यह उठता है कि जब एक भूमि के विक्रय पर कलेक्टर और कमिश्नर ने दो बार आपत्ति जताकर आवेदन खारिज कर दिया था, तो तीसरी बार कौन-से नियम के तहत अनुमति दी गई? क्या यह मामला प्रशासनिक लापरवाही का है या फिर सोची-समझी मिलीभगत का, जिससे शासन की सेवा भूमि को निजी लाभ के लिए बेचा गया?

न्याय की गुहार:

पीड़ित द्वारका प्रसाद सोनी ने अनुविभागीय अधिकारी से अपील की है कि इस पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच कराकर विक्रय रजिस्ट्री और नामांतरण को निरस्त किया जाए और दोषियों पर कानूनी कार्रवाई की जाए।

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