गारियाबंद में युक्तियुक्तकरण प्रक्रिया पर उठे सवाल, शिक्षकों में नाराजगी।

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प्रतिनियुक्त शिक्षकों के भरोसे पूरी व्यवस्था, कक्षाओं में पढ़ाई प्रभावित.

गारियाबंद – शिक्षा विभाग द्वारा जारी युक्तियुक्तकरण (rationalization) और काउंसलिंग प्रक्रिया इन दिनों गारियाबंद जिले में विवादों में घिरती नजर आ रही है। शिक्षकों के बीच इस बात को लेकर भारी असंतोष है कि इस पूरी प्रक्रिया का संचालन उन्हीं शिक्षकों के माध्यम से किया जा रहा है जो स्वयं वर्षों से अपने मूल स्कूल से बाहर प्रतिनियुक्ति या संलग्निकरण के माध्यम से कार्यालयों में पदस्थ हैं।शिक्षकों का आरोप है कि जिन व्याख्याताओं और शिक्षकों ने वर्षों से शैक्षणिक कार्य छोड़कर दफ्तरों में मलाईदार पदों पर कब्जा जमा रखा है, उन्हें न सिर्फ प्रक्रिया का हिस्सा बनाया गया है, बल्कि उनके मूल विद्यालयों में उनके पद को “भरा हुआ” दिखाया जा रहा है। वास्तविकता यह है कि वे स्कूल में उपस्थिति नहीं दे रहे, जिससे बच्चों को उस विषय की पढ़ाई ही नहीं मिल पा रही।

रिक्त पदों को बताया जा रहा भरा, बच्चे हो रहे वंचित

स्थिति यह है कि जिन स्कूलों में शिक्षक प्रतिनियुक्ति पर हैं, वहां उनके पद को रिक्त घोषित नहीं किया गया है। इससे न तो वहां किसी नए शिक्षक की नियुक्ति हो पा रही है और न ही उस विषय की पढ़ाई बच्चों को मिल रही है। इसके उलट जो शिक्षक नियमित रूप से विद्यालय में पढ़ा रहे हैं, उन्हें “अतिशेष” बताकर दूसरी जगह भेजा जा रहा है।शिक्षकों का कहना है कि इस प्रक्रिया में पारदर्शिता का पूरी तरह अभाव है और निर्णय लेने में व्यावहारिकता की उपेक्षा की गई है। प्रतिनियुक्त शिक्षकों के पद को यदि रिक्त नहीं दिखाया जाएगा, तो उस स्कूल में उस विषय की पढ़ाई का जिम्मा कोई नहीं ले पाएगा, और विद्यार्थी लगातार शैक्षणिक नुकसान उठाते रहेंगे।

शिक्षक संघ की माँग: प्रतिनियुक्त पदों को रिक्त घोषित किया जाए

शिक्षक संघों और अनेक शिक्षकों ने मांग की है कि जो भी शिक्षक प्रतिनियुक्ति या संलग्निकरण में कार्यरत हैं, उनके पदों को युक्तियुक्तकरण प्रक्रिया में रिक्त माना जाए और वहां नए शिक्षकों की तैनाती की जाए। साथ ही, काउंसलिंग एवं पदस्थापन की प्रक्रिया में उन्हीं शिक्षकों को जोड़ा जाए जो वर्तमान में विद्यालयों में सक्रिय रूप से शिक्षण कार्य कर रहे हैं।

प्रशासन की चुप्पी

इस पूरे मामले में प्रशासन की ओर से अभी तक कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं आई है। परंतु शिक्षकों की बढ़ती नाराजगी और छात्रों के हितों को देखते हुए यह आवश्यक हो गया है कि शिक्षा विभाग इस पर शीघ्र संज्ञान ले और पारदर्शिता के साथ समाधान निकाले।