रक्षित केंद्र में वसूली का खेल उजागर—शिकायत के बाद प्रधान आरक्षक निलंबित, पुलिस महकमे की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल।
जांजगीर-चांपा – जिला पुलिस अधीक्षक कार्यालय से जारी आदेश ने पुलिस विभाग की अंदरूनी कार्यप्रणाली पर करारा प्रहार किया है। रक्षित केंद्र जांजगीर-चांपा में पदस्थ प्रधान आरक्षक क्रमांक 138 विनोद दिवाकर पर अवैध राशि की उगाही जैसे गंभीर आरोप सामने आने के बाद उन्हें तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है। यह कार्रवाई आवेदक टी.आर. साहू द्वारा प्रस्तुत गंभीर शिकायत पत्र के आधार पर की गई है।
पत्र में लगाए गए आरोप इतने गंभीर और चौंकाने वाले हैं कि प्रथम दृष्टया ही पुलिस अधीक्षक को सख्त कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ा। आदेश में स्पष्ट उल्लेख है कि शिकायत की गंभीरता को दृष्टिगत रखते हुए प्रधान आरक्षक को तत्काल निलंबित कर रक्षित केंद्र जांजगीर-चांपा से संबद्ध किया गया है। निलंबन अवधि में उन्हें नियमानुसार निर्वाह भत्ते की पात्रता दी जाएगी।
यह मामला केवल एक कर्मचारी के निलंबन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सवाल खड़ा करता है कि क्या रक्षित केंद्र जैसे संवेदनशील संस्थान में अवैध वसूली बिना संरक्षण के संभव है? क्या अब तक ऐसे कृत्यों पर आंख मूंदी जाती रही?
आदेश में नगर पुलिस अधीक्षक जांजगीर को निर्देशित किया गया है कि वे पूर्व शिकायत एवं वर्तमान शिकायत की छायाप्रति संलग्न कर प्रकरण की प्राथमिक जांच गंभीरतापूर्वक करते हुए 5 दिवस के भीतर प्रतिवेदन प्रस्तुत करें। यह निर्देश अपने आप में इस बात का संकेत है कि मामला केवल औपचारिक नहीं, बल्कि विभागीय साख से जुड़ा हुआ है।
इसके साथ ही रक्षित निरीक्षक को आवश्यक कार्यवाही एवं आदेश की प्रति संबंधित प्रधान आरक्षक को प्रदान कर प्राप्ति अभिस्वीकृति प्रस्तुत करने के निर्देश दिए गए हैं। वेतन, स्थापना एवं जिविशा शाखा को भी आदेश की प्रति भेजी गई है, जिससे यह स्पष्ट है कि प्रशासनिक स्तर पर इस प्रकरण को हल्के में नहीं लिया जा रहा।
फिलहाल बड़ा सवाल यही है कि
क्या जांच निष्पक्ष होगी या मामला फाइलों में दफन कर दिया जाएगा?
और यदि आरोप सही पाए जाते हैं, तो
क्या केवल निलंबन ही पर्याप्त कार्रवाई होगी, या आपराधिक प्रकरण भी दर्ज किया जाएगा?
यह प्रकरण पुलिस विभाग के भीतर व्याप्त कथित भ्रष्टाचार पर एक और काला धब्बा है, जिसने आम जनता के भरोसे को गहरी ठेस पहुंचाई है। अब निगाहें जांच रिपोर्ट पर टिकी हैं, जो तय करेगी कि यह कार्रवाई न्याय की शुरुआत है या सिर्फ औपचारिकता का अंत।
