घरघोड़ा से फाइनेंस फ्रॉड का बड़ा भंडाफोड़ – श्रीराम फाइनेंस कॉर्पोरेशन की शाखा में ₹1.30 करोड़ का फर्जी लोन घोटाला उजागर, 10 आरोपियों के खिलाफ आपराधिक षड्यंत्र, धोखाधड़ी व कूटरचना का मामला दर्ज…
रायगढ़ – वित्तीय जगत को हिला देने वाला एक बड़ा घोटाला घरघोड़ा थाना क्षेत्र से सामने आया है। श्रीराम फाइनेंस कॉर्पोरेशन प्रा. लि. की घरघोड़ा शाखा में करोड़ों की फर्जीवाड़ा और गबन की कहानी अब एफआईआर में दर्ज हो चुकी है। कंपनी के लीगल विभाग के मैनेजर राकेश तिवारी की शिकायत पर पुलिस ने ₹1,30,50,000 (एक करोड़ तीस लाख पचास हजार रुपये) की धोखाधड़ी के मामले में 10 आरोपियों के खिलाफ धारा 120-बी, 419, 420, 467, 468, 470 व 471 भारतीय दंड संहिता के तहत अपराध क्रमांक 0297/25 कायम कर जांच शुरू की है।
*तीन कर्मचारियों और सात दलालों की मिलीभगत से रचा गया फर्जी लोन रैकेट :* पुलिस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017 से 2019 के बीच घरघोड़ा शाखा में पदस्थ तीन मुख्य कर्मचारी –
* विरेंद्र प्रताप पुरसेठ,
* खेमराज गुप्ता,
* सुधीर निषाद ने अपने बाहरी सहयोगियों राजकुमार साहू, मदनसुंदर साहू, खेमराज पटेल, नीलाम्बर यादव, नीलांचल गुप्ता, संजय गुप्ता और रामकुमार पोर्ते के साथ मिलकर फर्जी ग्राहकों के नाम पर लोन स्वीकृत कर कंपनी से लाखों की ठगी की।
इन कर्मचारियों ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए फर्जी दस्तावेज तैयार करवाए, झूठी दुकानों के फोटो लगवाए, और फर्जी सत्यापन रिपोर्ट बनाकर श्रीराम फाइनेंस कॉर्पोरेशन को भारी आर्थिक नुकसान पहुँचाया।
*26 फर्जी ग्राहकों के नाम पर खेले गए करोड़ों के खेल :* कंपनी की आंतरिक जांच में खुलासा हुआ कि आरोपियों ने 26 काल्पनिक ग्राहकों के नाम पर व्यापारिक, व्यक्तिगत और दोपहिया ऋण जारी करवाए। इनमें से अधिकांश ग्राहकों का न तो कोई व्यवसाय था, न ही उन्होंने कभी ऋण के लिए आवेदन किया था। घोटालेबाज कर्मचारियों ने अलग-अलग ग्रामीणों और बेरोजगारों को मामूली रिश्वत या लालच देकर उनके नाम का उपयोग किया और फिर पूरी रकम स्वयं हड़प ली।
जांच में यह भी पाया गया कि कई मामलों में किसी अन्य व्यापारी की दुकान को फर्जी तरीके से ‘ग्राहक का व्यवसायिक प्रतिष्ठान’ दिखाकर ऋण की प्रक्रिया पूरी की गई।
*रिश्वत लेकर सत्यापन और गारंटी की जालसाजी :* एफआईआर में दर्ज बयान के अनुसार, आरोपियों ने रिश्वत लेकर फर्जी दस्तावेजों पर सत्यापन की औपचारिकता निभाई। कुछ मामलों में गारंटरों की दुकानों की तस्वीरें लगाकर ग्राहकों का व्यवसायिक प्रमाण तैयार किया गया। जैसे – ग्राहक शंकरलाल यादव के ऋण में उसके गारंटर नीलांचल गुप्ता की दुकान को ग्राहक का व्यवसाय बताया गया। इसी तरह राजकुमार साहू, संजय गुप्ता, खेमराज पटेल, नीलाम्बर यादव, रामकुमार पोर्ते जैसे दलालों ने मिलकर दर्जनों लोन खातों से रकम का गबन किया।
कंपनी को ₹1.30 करोड़ का नुकसान, जांच में खुला गबन का जाल : श्रीराम फाइनेंस कॉर्पोरेशन के लीगल विभाग ने 15 जनवरी 2025 को इस संदिग्ध लोन मामले की जांच का आदेश जारी किया। जांच अधिकारी राकेश तिवारी ने अपनी टीम के साथ ग्राहकों से मुलाकात की, तो चौंकाने वाली सच्चाई सामने आई – अधिकांश ग्राहकों ने कहा कि उन्हें लोन का कोई लाभ नहीं मिला, दस्तावेजों पर बिना जानकारी हस्ताक्षर करवाए गए, और रकम सीधे कर्मचारियों या उनके दलालों ने निकाल ली।
कंपनी ने पुष्टि की कि इस फर्जीवाड़े से संस्था को ₹1 करोड़ 30 लाख 50 हजार रुपये का सीधा आर्थिक नुकसान हुआ है।
*घरघोड़ा पुलिस ने दर्ज की एफआईआर, जांच एएसआई राम सजीवन वर्मा के सुपुर्द :* घरघोड़ा थाना प्रभारी के निर्देश पर एएसआई राम सजीवन वर्मा ने एफआईआर दर्ज कर जांच अपने हाथ में ली है। पुलिस ने कहा है कि यह मामला संगठित वित्तीय अपराध की श्रेणी में आता है और इसमें कई चरणों में कूटरचना की गई है। जांच के दौरान संदिग्ध बैंक खातों, कंपनी के आंतरिक रिकॉर्ड, और ग्राहकों के बयान खंगाले जा रहे हैं।फिलहाल पुलिस ने सभी दस आरोपियों को नोटिस जारी कर पूछताछ के लिए तलब किया है, जबकि कुछ की संभावित गिरफ्तारी जल्द हो सकती है।
*घोटाले की परतें खुलने लगीं – ट्रांजेक्शन की डिजिटल जांच जारी :* सूत्रों के अनुसार पुलिस को ऐसे कई बैंक ट्रांजेक्शन मिले हैं, जिनके जरिए फर्जी लोन की रकम को अलग-अलग खातों में ट्रांसफर किया गया था। कई बार रकम निकालने के तुरंत बाद नकद में बांट दी जाती थी। पुलिस डिजिटल ट्रेल का विश्लेषण कर रही है ताकि रकम की सही प्रवाह श्रृंखला का पता लगाया जा सके। संभावना है कि आने वाले दिनों में कंपनी के आंतरिक प्रबंधन की भूमिका की भी जांच हो सकती है।
*फाइनेंस कंपनी में साजिश की गंध – अंदरूनी मिलीभगत की जांच भी शुरू :* कंपनी सूत्रों का मानना है कि यह घोटाला स्थानीय स्तर तक सीमित नहीं, बल्कि ऊपरी प्रबंधन तक फैला नेटवर्क हो सकता है।
पुलिस इस दिशा में भी जांच कर रही है कि क्या फर्जी लोन स्वीकृति में किसी वरिष्ठ अधिकारी की मौन सहमति या लापरवाही रही। जांच अधिकारी ने संकेत दिया है कि आगे लेखा विभाग और लोन अप्रूवल यूनिट के कुछ कर्मचारियों से भी पूछताछ की जा सकती है।
*आर्थिक अपराधों के बढ़ते खतरे पर सवाल :* यह मामला सिर्फ एक फाइनेंस कंपनी तक सीमित नहीं है – बल्कि यह सवाल खड़ा करता है कि छोटे शहरों में कार्यरत फाइनेंस कंपनियों की शाखाओं में पारदर्शिता की निगरानी कौन करेगा? घरघोड़ा जैसे कस्बों में लाखों रुपये के फर्जीवाड़े बिना किसी संदेह के वर्षों तक चलते रहना, वित्तीय नियमन तंत्र की कमजोरी को उजागर करता है।
यह मामला रायगढ़ जिले में वित्तीय पारदर्शिता पर गहरी चोट है। यह साबित करता है कि जब वित्तीय संस्थान की शाखाओं में बैठे कर्मचारी ही धोखाधड़ी में शामिल हो जाएं, तो न केवल संस्थान बल्कि आम नागरिकों का भरोसा भी खतरे में पड़ जाता है।
